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शब्द

♦   शब्द:       प्रयोग–योग्य, एकार्थ–बोधक तथा परस्पर अन्वित वर्णों के समूह को शब्द कहते हैं। दूसरे शब्दों में एक या अनेक वर्णों के मेल से निर्मित स्वतंत्र एवं सार्थक ध्वनि ही शब्द कहलाती है। जैसे – एक वर्ण से निर्मित शब्द—न (नहीं) व (और), अनेक वर्णों से निर्मित शब्द—कुत्ता, शेर, कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा, बालक, कागज, कलम आदि।       मनुष्य सामाजिक प्राणी है तथा वह समाज में भाषा के माध्यम से परस्पर विचार–विनिमय करता है। इस प्रक्रिया में जो वाक्य प्रयुक्त हैं, उनमें सार्थक शब्दों का प्रयोग करता है। शब्द किसी भाषा के प्राण हैं। बिना शब्दों के भाषा की कल्पना करना असंभव है। शब्द भाषा की एक स्वतंत्र एवं सार्थक इकाई है, जो एक निश्चित अर्थ का बोध कराती है। ♦   शब्द–भेद:       हिन्दी भाषा, विकास की दीर्घ परम्परा और अनेक भाषाओं के सम्पर्क का परिणाम है। फलतः हिन्दी शब्दावली का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जाता है।

तत्सम, तद्भव, अर्ध्द-तत्सम देशी, विदेशी एवं संकर शब्द

विकास (स्रोत) के आधार पर शब्द–भेद:       प्रत्येक भाषा का विकास निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें भाषा के नये–नये शब्दों का निर्माण होता रहता है। हिन्दी भाषा मेँ विकास के आधार पर शब्दोँ को छः वर्गों में विभाजित किया जाता है – (1)   तत्सम् शब्द   –       हिन्दी भाषा का उद्भव संस्कृत से माना जाता है; इस कारण हिन्दी में संस्कृत के कुछ शब्द मूल रूप के समान प्रयुक्त होते हैं और इनके सहयोग से अनेक शब्दों का निर्माण किया जाता है।       जो शब्द संस्कृत से हिन्दी में बिना परिवर्तन किये अपना लिये जाते हैं, उन्हें तत्सम् शब्द कहते हैं। ‘तत्’ का आशय ‘उसके’ और ‘सम्’ का आशय ‘समान’ है। इस प्रकार जो शब्द संस्कृत के समान होते हैं या जो शब्द बिना विकृत हुए संस्कृत से ज्यों के त्यों हिन्दी भाषा में आ गये हैं, वे तत्सम् शब्द होते हैं। जैसे – भानु, प्राण, कर्म, अग्नि, कोटि, हस्त, मस्तक, यौवन, शृंगार, ज्ञान, वायु, अश्रु, ग्रीवा, दीपक आदि। (2)   तद्भव शब्द   –       ...

रूढ़, यौगिक एवं योगरूढ़ शब्द

व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द–भेद   :       व्युत्पत्ति (बनावट) एवं रचना के आधार पर शब्दोँ के तीन भेद किये गये हैँ – (1) रूढ़ (2) यौगिक (3) योगरूढ़। (1)   रूढ़ :       जिन शब्दोँ के खण्ड किये जाने पर उनके खण्डोँ का कोई अर्थ न निकले, उन शब्दोँ को ‘रूढ़’ शब्द कहते हैँ। दूसरे शब्दोँ मेँ, जिन शब्दोँ के सार्थक खण्ड नहीँ किये जा सकेँ वे रूढ़ शब्द कहलाते हैँ। जैसे – ‘पानी’ एक सार्थक शब्द है , इसके खण्ड करने पर ‘पा’ और ‘नी’ का कोई संगत अर्थ नहीँ निकलता है। इसी प्रकार रात, दिन, काम, नाम आदि शब्दोँ के खण्ड किये जाएँ तो ‘रा’, ‘त’, ‘दि’, ‘न’, ‘का’, ‘म’, ‘ना’, ‘म’ आदि निरर्थक ध्वनियाँ ही शेष रहेँगी। इनका अलग–अलग कोई अर्थ नहीँ है। इसी तरह रोना, खाना, पीना, पान, पैर, हाथ, सिर, कल, चल, घर, कुर्सी, मेज, रोटी, किताब, घास, पशु, देश, लम्बा, छोटा, मोटा, नमक, पल, पेड़, तीर इत्यादि रूढ़ शब्द हैँ। (2)   यौगिक :       यौगिक शब्द वे होते हैँ, जो दो या अधिक शब्दोँ के योग से बनते हैँ और उनके खण्ड करने पर उन खण्डोँ क...

सार्थक व निरर्थक शब्द

अर्थ के आधार पर शब्द–भेद: अर्थ के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं– 1.   सार्थक शब्द –       जिन शब्दोँ का पूरा–पूरा अर्थ समझ मेँ आये, उन्हेँ सार्थक शब्द कहते हैँ। जैसे – कमल, गाय, पक्षी, रोटी, पानी आदि। 2.   निरर्थक शब्द –       जिन शब्दोँ का कोई अर्थ नहीँ निकलता, उन्हेँ निरर्थक शब्द कहते हैँ। जैसे – लतफ, ङणमा, वाय, वंडा आदि।       कभी–कभी एक सार्थक शब्द के साथ एक निरर्थक शब्द का प्रयोग किया जाता है, जैसे – चाय–वाय, गाय–वाय, रोटी–वोटी, पेन–वेन, पुस्तक–वुस्तक, डंडा–वंडा, पानी–वानी आदि। इन शब्दोँ मेँ आये हुए दूसरे अकेले शब्द का कोई अर्थ नहीँ निकलता। जैसे– गाय के साथ वाय और पेन के साथ वेन आदि। गाय और पेन, शब्दोँ का अर्थ पूर्ण रूप से समझ मेँ आता है जबकि वाय और वेन शब्दोँ का अर्थ समझ मेँ नहीँ आता। यदि वाय, और वेन को यहाँ से हटा दिया जाये तो भी शब्द के अर्थ पर कोई असर नहीँ पड़ेगा परन्तु ये शब्द पहले शब्द के साथ मिलकर एक विशिष्ट अर्थ देते हैँ, जो अकेले गाय और पेन नहीँ है। जैसे – ...

प्रयोग के आधार पर शब्द–भेद:

      वाक्य मेँ शब्द का प्रयोग किस रूप मेँ हुआ है, इस आधार पर भी शब्दोँ का वर्गीकरण किया गया है– (1) नाम (2) आख्यात (3) उपसर्ग (4) निपात। संस्कृत भाषा मेँ पाणिनि ने इनकी पद संज्ञा कर समस्त शब्द–समूह को दो वर्गोँ मेँ विभाजित किया है– (1) सुबन्त और (2) तिगन्त। सुबन्त से तात्पर्य शब्दोँ के साथ कारक व्यंजक विभक्तियोँ का प्रयोग किया जाता है, जिन शब्दोँ के साथ क्रिया–व्यंजक विभक्तियोँ का प्रयोग किया जाता है, उन्हेँ तिगन्त कहा जाता है।       हिन्दी मेँ प्रयोग के आधार पर शब्द के निम्नलिखित आठ भेद हैँ– 1. संज्ञा 2. सर्वनाम 3. क्रिया 4. विशेषण 5. क्रिया–विशेषण 6. सम्बन्धबोधक अव्यय 7. समुच्चयबोधक अव्यय 8. विस्मयादिबोधक अव्यय।

विकारी एवं अविकारी शब्द

रूप विकार के आधार पर शब्द–भेद:     रूप विकार की दृष्टि से शब्दोँ को दो भागोँ मेँ विभाजित किया जाता है– (1)   विकारी शब्द (Finite Words) –       जिन शब्दोँ का रूप लिँग, वचन, पुरुष, काल एवं कारक के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, वे विकारी शब्द कहलाते हैँ। जैसे – लड़का > लड़की – लिँग के कारण, अच्छा > अच्छे, गया > गयी आदि – काल के कारण।       इसमेँ चार प्रकार के शब्द हैँ– 1. संज्ञा (Noun) 2. सर्वनाम (Pronoun) 3. क्रिया (Verb) 4. विशेषण (Adjective) (2)   अविकारी शब्द (Non-finite Words)–       अविकारी शब्द वे शब्द हैँ जिनका रूप लिँग, वचन, काल, विभक्ति, पुरुष के कारण परिवर्तित नहीँ होता। ये शब्द जहाँ भी प्रयुक्त होते हैँ, वहाँ एक ही रूप मेँ रहते हैँ। ये शब्द अव्ययीभाव समास के उदाहरण कहलाते हैँ। जैसे – किन्तु, परन्तु, अन्दर, बाहर, अधीन, इसलिए, यद्यपि, तथापि, कल, परसोँ, बहुत, शाबास आदि। अविकारी शब्दोँ के भी चार प्रकार हैँ– (1) क्रिया–विशेषण (Adverb) (2) समुच्...

वाचक, लक्षक और व्यंजक शब्द

परिस्थिति और प्रयोग के आधार पर शब्द–भेद:      परिस्थिति और प्रयोग की दृष्टि से शब्द के तीन प्रकार होते हैँ– 1.   वाचक शब्द–       जो शब्द केवल अपने सांकेतिक अर्थ ही प्रदान करते हैँ, उन्हेँ वाचक शब्द कहा जाता है। प्रत्येक शब्द मेँ तत्सम्बद्ध भाषा–भाषी समाज द्वारा किसी न किसी भाव, विचार, वस्तु, स्थान अथवा व्यक्ति का संकेत निहित कर दिया जाता है। जब कोई शब्द केवल उस संकेत का ही बोध कराता है, तब उसे वाचक, सांकेतिक या अभिधेय कहा जाता है। जैसे– राम, पुस्तक, कुर्सी, झुन्झुनूं, लड़का आदि। जब उक्त शब्दोँ का वाक्योँ मेँ वही अर्थ होता है, जो सांकेतिक है, तब इनकी वाचक संज्ञा होगी। यदि कोई मित्र अर्थ प्रदान करेगा तो संज्ञा परिवर्तित हो जायेगी। वाचक शब्द से व्यक्त अर्थ को वाच्यार्थ, मुख्यार्थ या संकेतार्थ कहा जाता है। 2.   लक्षक शब्द–       वाच्यार्थ का बोध हो जाने पर जब किसी शब्द का सादृश्य से इतर, मुख्यार्थ से सम्बद्ध कोई अन्य अर्थ ग्रहण किया जाता है, तब उस शब्द को लक्षक और अर्थ को लक्ष्यार्थ कहा जाता है।...

शब्द–शक्तियाँ

शब्द–शक्ति          बुद्धि का वह व्यापार या क्रिया जिसके द्वारा किसी शब्द का निश्चयार्थक ज्ञान होता है, अर्थात् अमुक शब्द का निश्चित अर्थ यह है—इस तरह का स्थायी ज्ञान जिस शब्द–व्यापार से मानस मेँ संस्कार रूप मेँ समाविष्ट होता है, उसे शब्द–शक्ति कहते हैँ।       वाक्य मेँ सदा सार्थक शब्द का प्रयोग होता है। वाक्य मेँ प्रयुक्त प्रत्येक शब्द का प्रयोग के अनुसार अर्थ बतलाने वाली वृत्ति को उसकी शक्ति अर्थात् शब्द–शक्ति या शब्द–वृत्ति कहते हैँ।       शब्द–शक्ति के द्वारा व्यक्त अर्थ शब्द की परिस्थिति और प्रयोग के अनुसार तीन प्रकार के होते हैँ— 1. वाच्यार्थ—शब्द का मुख्य, प्रधान अथवा प्रचलित अर्थ वाच्यार्थ कहलाता है। 2. लक्ष्यार्थ—शब्द का अमुख्य या अप्रधान अर्थ लक्ष्यार्थ कहलाता है। 3. व्यंग्यार्थ—देश–काल एवं प्रसंग के अनुसार लगाया गया अन्यार्थ या प्रतीयमानार्थ व्यंग्यार्थ कहलाता है।       इस तरह तीनोँ प्रकार के अर्थ प्रकट करने वाली तीन शब्द–शक्तियाँ होती हैँ— (1) अभिधा—...